संकरी सी उस गली में
दोनों तरफ हजारों जज्बातों की
खिड़कियां खुलती है
जुगनू टिमटिमाते है
रूई के फ़ोओं से
लम्हे तैरते हैं
शाम रंग सपने झिलमिलाते हैं
तितिलियों के पंखो का
संगीत घुलता है
रेशमी लफ्जो की
खुशबू महकती है
संकरी सी उस गली में
तेरी आँखों से
मेरे दिल तक जो पहुचती है ..
मेरे दिल तक जो पहुचती है ..