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संकरी सी गली से लोगों के दिल तक पहुचने का रास्ता है ये...अपने आप के बारे में कहना सबसे मुश्किल काम होता है... ये आप सब पर छोडती हूँ...

Thursday, 12 February 2015

कान्हा

आओ न किसी दिन
यमुना किनारे
कभी किसी बड़
या पीपल पर चढ़ें
कोई पीला सा आँचल
क्यूँ नहीं देते सौगात में
मुझे भी
दूर-दूर चलें चारागाहों में
खेलें मिलकर दोनों
मीठा सा राग
क्यूँ नहीं सुनाते मुझे
कभी तो सताओ
कभी तो मटकी फोड़ो
चुरा लो मक्खन कभी तो
कान्हा कहाँ हो तुम
आओ न
रास लीला करो
कभी मेरे साथ भी