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संकरी सी गली से लोगों के दिल तक पहुचने का रास्ता है ये...अपने आप के बारे में कहना सबसे मुश्किल काम होता है... ये आप सब पर छोडती हूँ...

Friday, 20 February 2015

कौन जान पायेगा उसे

मैंने तो कभी सोचा न था
पुरुषार्थी हाथ पहुंचेंगे किसी दिन
उन धवल शिखरों तक
जहाँ से होकर
ब्रह्माण्ड का रहस्य जाने के लिए
जाने कितने तूफ़ान उठेंगे
कौन जान पाएगा उसे

कल-कल करती नदियां बहती है कविता बनकर
राग-रागिनियों और शब्दों का तिलस्म मिलकर
गढ़ते हैं किस्से कह कहकर
वो देखो
भाषा की दीवार पर विश्वास मानव का
कौन जान पाएगा उसे

सिन्दूरी रंग सा स्पर्श तुम्हारा लेकर
सूरज का यूँ छपाक से
दूर झील में समा जाना
एक बिम्ब सताता है रह रहकर
की क्यों कंकड़ फेंकने से झील का
पानी उछलता है कांप कर
कौन जान पाएगा उसे