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संकरी सी गली से लोगों के दिल तक पहुचने का रास्ता है ये...अपने आप के बारे में कहना सबसे मुश्किल काम होता है... ये आप सब पर छोडती हूँ...

Thursday, 18 June 2015

औरत

औरत

खंडहर हो चुकी
पहली सदी की इमारत हूँ
खिड़कियाँ कहाँ
कहाँ दरवाज़े
अब नहीं मिलते
मुझसे गुज़रती अनहद सुरंगे
अन्दर बहुत अन्दर
गर्भ में कहीं
अब ज़रा सा पानी
एक किरण
और टिड्डियों के कुछ बिल
बचे हैं

मुझ तक पहुँचने से
डरते क्यूँ हो तुम
हे प्राणनाथ
या ईश कह लो
तुम्हारे ही शब्दों में
हमेशा गुज़र क्यूँ जाते हो मुझसे
सराय भी हूँ
तो तुम्हारी ही हूँ न
आसरा हूँ तुम्हारी
भूल क्यूँ जाते हो
कि मकाँ वही रहता है
ठहरो तो सराय घर बन जाए
ठहर के देखो कभी
ठहरते क्यूँ नहीं