दौड़ता-भागता
चिल्लाता सा ये शहर
खामोश है आज
उदास है
तुम्हारे जाने से
रूठा है शायद
कितनी दफे कहा है मैंने
कि बातें करो मुझसे
अकेली हूँ आज
मगर नहीं करता
किसी ज़िद्दी बच्चे सा
होंठ लटकाये हुए है
बोलता ही नहीं कुछ
कहा मैंने
कि चिल्लाओ न
चिल्लाते क्यों नहीं
कहाँ गयीं तुम्हारी आवाज़ें
टीं-टीं, पी-पी
घर्रर्र-घर्रर सी वो हज़ारों आवाज़ें
जो हर रोज़
परेशान करती है मुझे
मगर उसने कुछ नहीं कहा
मेट्रो भी
अजीब सी खाली थी आज
तुम्हे छोड़कर
रोती सी लौटी मेरे साथ
आज बहुत जल्दी सो भी गया
ये शहर
वरना सोता कहाँ था
रात भर खेलता था
साथ हमारे
सड़कों की .... थीं
बिजली के खम्भों पे
रोज़ नयी
कच्चे…… थे हम
आज कोई खेल नहीं
सब खाली है
सुना है चुप है आज
अँधेरा है
अंदर भी, बाहर भी
सोने जा रही हूँ
मगर इस ख़ामोशी में
नींद भी आने से
डर रही है
क्या करूँ?
बोलो न !
चिल्लाता सा ये शहर
खामोश है आज
उदास है
तुम्हारे जाने से
रूठा है शायद
कितनी दफे कहा है मैंने
कि बातें करो मुझसे
अकेली हूँ आज
मगर नहीं करता
किसी ज़िद्दी बच्चे सा
होंठ लटकाये हुए है
बोलता ही नहीं कुछ
कहा मैंने
कि चिल्लाओ न
चिल्लाते क्यों नहीं
कहाँ गयीं तुम्हारी आवाज़ें
टीं-टीं, पी-पी
घर्रर्र-घर्रर सी वो हज़ारों आवाज़ें
जो हर रोज़
परेशान करती है मुझे
मगर उसने कुछ नहीं कहा
मेट्रो भी
अजीब सी खाली थी आज
तुम्हे छोड़कर
रोती सी लौटी मेरे साथ
आज बहुत जल्दी सो भी गया
ये शहर
वरना सोता कहाँ था
रात भर खेलता था
साथ हमारे
सड़कों की .... थीं
बिजली के खम्भों पे
रोज़ नयी
कच्चे…… थे हम
आज कोई खेल नहीं
सब खाली है
सुना है चुप है आज
अँधेरा है
अंदर भी, बाहर भी
सोने जा रही हूँ
मगर इस ख़ामोशी में
नींद भी आने से
डर रही है
क्या करूँ?
बोलो न !