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संकरी सी गली से लोगों के दिल तक पहुचने का रास्ता है ये...अपने आप के बारे में कहना सबसे मुश्किल काम होता है... ये आप सब पर छोडती हूँ...

Wednesday, 27 April 2016

फेरी वाला

ख्वाबों के फेरीवाले से
कुछ सस्ते ख्वाब खरीदें हैं
सस्ते ख्वाब
हलके ख्वाब
ख्वाब सस्ते हैं इतने
कि मुट्ठी भर लम्हे
उसने यूँ ही
मेरी ख़्वाबों की थैली में
डाल दिए
मुफ्त के लम्हे
बिना किसी कीमत के
मीठे लम्हे कुछ
कुछ खारे मेरे आंसुओं से
दुखते लम्हे
सूखे लम्हे भी है कुछ
मुफ्त के लम्हे
महीने से
तेरे एहसास से लम्हे
मुट्ठी भर लम्हे  

जी चाहता है -1

जी चाहता है
अरमानो से भरे इस दिल को
खुरच के सीने से
निकाल फेंकूं
या कहीं कोई बाज़ार हो
तो बताओ
वो एह्सास बेच आऊ 

चाँद-३

सूना सा ये घर
ना साथी है,
ना ही दोस्त कोई
गोल चेहरे वाला
ये गोरा सा मासूम बच्चा
सारी रात
अकेला ही खेल करता है
सूने से इस घर में
फलक की खिड़कियों के
दरवाज़ों के
पर्दों के आगे पीछे
लुका-छिपी में मशगूल
रहता है रात भर
आखिर बादल थक जाते हैं
ये भी नींद से बोझिल
बाबा के जागने से पहले
सो जाएगा
सूरज निकलने वाला है
कुछ देर में 

जी चाहता है-2

अकेले में बैठे-बैठे
कभी-कभी देर तक
अपने ही अंदर
घूरते-घूरते
लड़ते-लड़ते
थक जाती हूँ
बाईं तरफ
जो मांस का लोथड़ा है न
उसका तार-तार फड़फड़ाता है
और जी चाहता है
नाखूनों से खुरच कर
सारे तर निकाल फेंकूं
दूर किसी कूड़े के ढेर में
और फिर मुड़कर
कभी उस तरफ से न गुज़रूँ
चली जाऊं किसी ऐसी जगह
जहाँ
सांस लेना इतना भारी न हो

इक रात

चुरा ली इक रात
चांदनी की क़िस्मत से
ज़िंदगी की
रेतीली सूखी
ओढ़नी के पल्लू में
कसकर बाँध ली मैंने

तेरे शरबती रंग के
घोल में डुबोकर
रंगा खुद को

सफ़ेद गीली आँखों में
तेरी काली नैनों का
सूरमा लगाया

चखकर तेरी खुशबू के प्याले
अपने सूखे होठों के
कटोरों को भरा

तेरे इश्क़ की शराब से
अब हौले-हौले
चढ़ेगी मदहोशी
कई महीनों की नींद थी
जी भर सोउंगी
जरा सा करार है
तेरे हाथों की छुअन का
और मखमली अहसास भी

तुम पहरा दो न
जब तक मैं सोऊँ 

मुसाफिर बनें

बहुत हुआ मेट्रो का सफर
चल अब 
पुरानी दिल्ली की 
भीड़ी गलियों से परे 
नयी दिल्ली की
चौड़ी सड़कों से परे 
चल कहीं 
किसी अज़नबी शहर 
या फिर किसी गांव 
नहीं तो 
किसी पहाड़ी बस्ती 
किसी अज़नबी राह पर 
चल पैदल चलें कुछ दूर 
न कुछ कहें 
न कुछ पूछें 
सिर्फ सुने आँखों से 

इस भीड़ की तन्हाइयों से निकलकर 
ले चलें अपनी तन्हायों को 
जेबों में भरकर 
सवालों के किवाड़ तोड़ें 
निकलें रिवाज़ों के खंडहरों से 
हम यूँ ही साथ चलें 
चल पैदल चलें कुछ दूर 
न कुछ कहें न पूछें 
सिर्फ सुने  आँखों से 

तुम अपनी टूटी नाव का 
ज़िक्र न करो 
मैं भी अपना जलता झोपड़ा 
भूल जाऊं 
तुम कौन हो 
मेरा गोत्र क्या है 
धर्म की दीवार से 
कटीली तारें हटाकर 
बस रहने दें 
इन बातों को 
अपनों से परे  
न कोई रस्म निभाएं 
न वचन कोई 
न ही बंधन हो न नाम कोई 
चल बेनाम रिश्ता निभाएं 

तुम भी मुशफिर रहो 
मैं भी मुशफिर रहूँ 
चल कुछ दूर यूँ ही चलें 
हाथ पकडे 
न कुछ कहें न पूछें 
सिर्फ सुने आँखों से 




ख़ामोशी

जम चुका है
दो झीलों का
खारा पानी
रंग बदलता
हँसता
और कई आर
नाराज़ सा पानी

खुशबू भी गयी अब
न पत्थर फेंकने से कांपता ही है
न कोई पायल बिछिये वाले पाँव
किनारे से छूते ही हैं उसको

सुना है
मोहब्बत हुई थी
किसी से
आँखों को


चाँद -१

धुंधलका है आसमान में 
ना बादल है 
न ही घटा कोई
फिर क्यूँ तारे नहीं आज 
क्यूँ इस आसमान का 
आँगन सूना है 
कोई मेहमान क्यूँ नहीं आया आज 
जिद्दी बच्चा खेल रहा है 
आँगन में 
अकेला ही  
बेहद चमकीले पैराहन में 
गुरूर में है चाँद आज 


हौसला

सपनों के घरौंदे
तकदीरों में जड़ दूँ 
लम्हों को वक़्त के 
काफिले से निकाल 
अलग-अलग कर लूँ 
और जी लूँ उन्हें 
ज़िंदगियों की तरह 
सांस-सांस भरूँ  
जन्मों की तरह 
हाथ थाम है 
तेरा जबसे 
हौसला बुलंद है 

महक

ये वक़्त महक रहा है
ख़ूबसूरत है
चमकीला है
रेशमी स्पर्श है
भूरे चकत्तों सा
रोटी के सींकने की खुशबू
लुभाती है भूखों को
और भरे पेट को भी 

वादे

वादों के थैले
जो भरे हैं हमने
उन्हें ज़मीं पे न रखना
रिवाज़ों की मिट्टी
और प्यार के आंसुओं ने
गाढ़ा काला
कीचड़ बना डाला है पैरों तले
ऊपर उठा लो
और ऊपर
कंधो से भी ऊपर

चलते हुए कहीं इल्ज़ामों के
छींटे ना लग जाएँ
उछलकर