जम चुका है
दो झीलों का
खारा पानी
रंग बदलता
हँसता
और कई आर
नाराज़ सा पानी
खुशबू भी गयी अब
न पत्थर फेंकने से कांपता ही है
न कोई पायल बिछिये वाले पाँव
किनारे से छूते ही हैं उसको
सुना है
मोहब्बत हुई थी
किसी से
आँखों को
दो झीलों का
खारा पानी
रंग बदलता
हँसता
और कई आर
नाराज़ सा पानी
खुशबू भी गयी अब
न पत्थर फेंकने से कांपता ही है
न कोई पायल बिछिये वाले पाँव
किनारे से छूते ही हैं उसको
सुना है
मोहब्बत हुई थी
किसी से
आँखों को