अकेले में बैठे-बैठे
कभी-कभी देर तक
अपने ही अंदर
घूरते-घूरते
लड़ते-लड़ते
थक जाती हूँ
बाईं तरफ
जो मांस का लोथड़ा है न
उसका तार-तार फड़फड़ाता है
और जी चाहता है
नाखूनों से खुरच कर
सारे तर निकाल फेंकूं
दूर किसी कूड़े के ढेर में
और फिर मुड़कर
कभी उस तरफ से न गुज़रूँ
चली जाऊं किसी ऐसी जगह
जहाँ
सांस लेना इतना भारी न हो
कभी-कभी देर तक
अपने ही अंदर
घूरते-घूरते
लड़ते-लड़ते
थक जाती हूँ
बाईं तरफ
जो मांस का लोथड़ा है न
उसका तार-तार फड़फड़ाता है
और जी चाहता है
नाखूनों से खुरच कर
सारे तर निकाल फेंकूं
दूर किसी कूड़े के ढेर में
और फिर मुड़कर
कभी उस तरफ से न गुज़रूँ
चली जाऊं किसी ऐसी जगह
जहाँ
सांस लेना इतना भारी न हो