तमाम ख़्वाबों की आँखें
अधूरे फ़साने के आख़िरी गीत को
तुम्हारी आँखों से सुनना चाहेंगी
दर्द फर्सुदा रातों के ज़र्द चेहरे
तुम्हारी परछाइयों में पनाह ढूंढेगें
रौशनी सारी दफन
किसी कांच की मोटी दीवार में रहेगी
उम्मीदों के जनाज़े रोज उठेंगे
चीख़ों के हल्क से जबानें खींच ली जाएगी
आहों के कद काटवा दिये जाएंगे
तुम्हें पुकारुंगी भी तो कैसे
मगर ताउम्र ये नज़रें तुम्हे ढूंढेंगी
अधूरे फ़साने के आख़िरी गीत को
तुम्हारी आँखों से सुनना चाहेंगी
दर्द फर्सुदा रातों के ज़र्द चेहरे
तुम्हारी परछाइयों में पनाह ढूंढेगें
रौशनी सारी दफन
किसी कांच की मोटी दीवार में रहेगी
उम्मीदों के जनाज़े रोज उठेंगे
चीख़ों के हल्क से जबानें खींच ली जाएगी
आहों के कद काटवा दिये जाएंगे
तुम्हें पुकारुंगी भी तो कैसे
मगर ताउम्र ये नज़रें तुम्हे ढूंढेंगी