देर से सहमी सी
डरी सी
दुबके बैठी है
तड़फ के बरस पड़ी
घंटो बरस कर
बहा के खारा पानी
आँखों से
ये रात अपनी कहानियां
सुनाती रही मुझे
खामोश है अब
सुबक रही है
सुन रही हूँ मैं
सिसकियाँ उसकी
डरी सी
दुबके बैठी है
तड़फ के बरस पड़ी
घंटो बरस कर
बहा के खारा पानी
आँखों से
ये रात अपनी कहानियां
सुनाती रही मुझे
खामोश है अब
सुबक रही है
सुन रही हूँ मैं
सिसकियाँ उसकी
कन्धा गीला है मेरा
उसकी आंसुओं से
मेरे कंधे पर
सर रख कर सोयी है ये रात
गरम पानी से मेरे जख्मों को
सेंका है
ये रात बहुत रोई है आज