कल रात जब तुम
चाँद को देख रहे थे
और मुझे भी
कहा था तुमने
देखो चाँद को
जी तो बहुत चाहा
पर मैं
बिस्तर से उठी नहीं
डर गयी थी
वो भी तुम्हारी तरह
दूर रहता है मुझसे
कैसे कहूँ कि
मैं चाहती हूँ
तुम और तुम्हारा ये चाँद
उतर आओ आँगन मेरे
नहीं तो
न दिखो मुझे
सुई से चुभते हो दोनों आँखों में