तीन पोड़ियाँ
गुलमेख और फूली वाली वासर
दादी माँ की चूड़ियों सी
हैंडल
बड़ी सी सांकल
दो खिड़कियां
एक बंद एक खुली
गहने थे किवाड़ों के
दो स्तम्भ
दो आले
दो चराग
पहरेदार थे
कान्हा, मोर, गाय
दूर से ही राह देखते
कल एक तोरण लगा
और ये द्वार बंद है
उस फंखुरी के लिए
जो रोज़ सुबह
भार झाड़ कर
साफ़ करती द्वार
गली से गुज़रते
हर शख्स, गाड़ी
कुत्ते,बिल्ली के लिए
स्वागत में