मैं छलनी हूँ
सैंकड़ों सुराख़ है जिस्म में,
वक्त की धार लगातार गुज़र रही हैं मुझसे
चाहू तो भी प्रेम को नही रोक पाती
हाँ, कुछ ताज़ुबों के कंकड़,
अनुभवों के कुछ शंख,
गुनाहों की मासूम सीपियाँ कुछ,
इक्कठा कर लिये हैं उसको पाने की कोशिश में
भूल जाती हूँ मैं
कि प्रेम तो तरल है
उसको छान नही सकते,
वक़त से जुदा नही कर सकते
बस जी सकते
महसूस कर सकते हैं
छू सकते हैं
पकड़ नही सकते
मगर मैं उसकी की खुमारी में
नाकाम उम्मीद लिए रहती हूँ