नरम, मखमली, शीतल
तेरे स्पर्श सी कोमल
नीली चुनरी ओढ़े
बच्चे की जुबां सी लड़खड़ाती
ये जो हवा है न
मुझे ढूंढती रहती है
कोनो में घर के
कभी खिड़कियों के
पर्दों से पूछती है
किवाड़ों से कभी
कभी तनियों पे झूलते कपड़ो से
सहतूत के पत्तों से कभी
और हाथ में खंजर लिए
आती है
मेरे पलकों से
होठों तक
गर्दन तक
खंजर घुमा जाती है
रोज़ क़त्ल करती मुझे
ये हवा जो है
तुझ सी ही है
तेरे स्पर्श सी कोमल
नीली चुनरी ओढ़े
बच्चे की जुबां सी लड़खड़ाती
ये जो हवा है न
मुझे ढूंढती रहती है
कोनो में घर के
कभी खिड़कियों के
पर्दों से पूछती है
किवाड़ों से कभी
कभी तनियों पे झूलते कपड़ो से
सहतूत के पत्तों से कभी
और हाथ में खंजर लिए
आती है
मेरे पलकों से
होठों तक
गर्दन तक
खंजर घुमा जाती है
रोज़ क़त्ल करती मुझे
ये हवा जो है
तुझ सी ही है