About Me

My photo
संकरी सी गली से लोगों के दिल तक पहुचने का रास्ता है ये...अपने आप के बारे में कहना सबसे मुश्किल काम होता है... ये आप सब पर छोडती हूँ...

Tuesday, 11 October 2016

नीदें .........
नींदे लालची बनिए सी 
डायरी के पन्नों पे अटकी है
तुझपे लिखी नज़्में
तेरी बातें
तन्हा रातें
तेरी आँखें
ख़मोश सांसें
अजनबी लकीरें 
ख्वाबी मुलाक़तें
फुसफुसाती तस्वीरें
उंगलियों के लम्स
छुअन,कंपन
आलीगंन, सिरहन
जकड़न,संकुचन
प्रेम ,जोग
राग,वैराग्य
सबका हिसाब करती रहती है
रात भर .....
जोड़ घटा गुणा 
सब पैंतरे आजमाएगी आज भी 
नींदे लालची बनिये सी हो चली है अब तो
भीड़..........
मै तन्हा ? तुम तन्हा ?
....
नहीं हुजूम है चारो तरफ मेरे 
शक़्लें हैं सिर्फ ,
जिस्मों की भीड़ भी
जो शक़्लें हैं उनके जिस्म नही
और जिस्मों की शक़्लें गायब 
सब तन्हा तन्हा,मायूस, चिड़चिड़े 
ऊबे हुए दूकानदार से  
भटकते ख़रीददार से 
एक दूसरे के लिए खांमख़्वाह
एक दुसरे की भीड़ में 
ख़ुदी को तलाशते आदमी और औरत 
नज़्म ...................
एक नज़्म है 
कुछ कुछ मुझसी 
अश'आर बिखरे बिखरे 
उलझे उलझे 
कई कई मानी लिए
घुंघराले से हुए जाते है 
मेरे गेसुओं से 
उन्वान जैसे 
वज़ूद में ना हो 
मिसरा दर मिसरा 
बेवजह बेमलब बेमानी 
देखो किस तरह 
हर्फ़ दर हर्फ़ 
अश्क़ अश्क़
आरस्तगी
तुमको जाज़िबियात में लिए जाता है 
मगर ये 
नामुकम्मल है 
जब तक तुम 
अपनी तहारत की मुहर 
न लगा दो 
जैसे मै अधूरी हूँ 
तुम्हारे इस्म बिना
एकतरफ़ा........
जलन होती है मुझे 
जब तुम्हारी नज़रे 
किसी और को चाहने की बात करती है 
फिर सोचती हूँ 
की वो भी किसी और को चाहती है 
उसे कोई और भी चाहता है ...
अरे हां सच मैं जानती हूँ उसे 
वो है ही अच्छी क्यों न चाहे उसे कोई
फिर एक बेखबर सी मुस्कुराहट होठों पे तैर जाती है ....
सोचती हूँ हम सब कितने मासूम है न 
एक मकड़ है नज़रे सब ख्वाहिशे जाला
और हम 
हम उसके जाले में फंसते जाते है .....

अच्छा ठीक है बाबा 
नही बोलूंगी ज्यादा अब 
तुम उसे एकतरफा चाहो 
मैं तुम्हे एकतरफा
वो मुझे 
उसे कोई और
अच्छा हम सब मिलकर लुक छुपी खेलें ...
नही तो पकड़म पकड़ाई ...
लफ़्ज़ा........
तुम लिखते रहना मुझे 
मेरे जिस्म को, कलम सा उंगलियों से 
यूं सलीके से पकड़ना 
कि कोई लफ्ज़ कतार से ऊपर नीचे ना हो 
मेरी रूह के पन्नों पे 
अपनी ख़लिश को उतार देना 
मैं मिलूंगी तुम्हे 
किसी उपन्यास की आख़िरी पँक्ति 
के पूर्ण विराम सी 
उस दिन जब 
मैं छोड़ कर जा रही होउंगी 
बंधनो की दुनिया
इन झूठ के रिश्तों से आज़ाद हो कर 
एक सच्चा रिश्ता जोड़ने 
तुमसे 
खुदसे 
तब मैं तुम्हारा दिया हुआ ये नाम 
साथ ले आउंगी 
तब तुम भी मुझे इसी नाम से पुकारना..
"लफ़्ज़ा"..
तुम्हारी लफ़्ज़ा

इश्क ..........
रात भर जागना
यूं ही ..
बार बार तेरी बोलती सी 
मुस्कराती तस्वीरों से 
बेबाक सी नज़र को 
चुरा लेने को जी चाहता है 
तेरा चुप रहना चुभता है 
फिर एक तस्वीर और खोलती हूँ
कुछ कहते कहते 
सांसे भर आती है 
कल तो 
आँख ने भी कुछ गीलापन
महसूस किया 
सोचा 
नाराज हो जाऊ 
फिर ...
वो ही नज़र 
इकतरफ़ा 
क्या 
इश्क़...
धत.....
पागल

जोगी
तुम्हारे होने का एहसास नया है
तुम्हारी आँखों की पुतलियों में एक इकाई है 
तुम ठराव हो 
कौन हो तुम 
काँच के दरिया में वफ़ा क़ी कश्ती के माझी से दीखते हो 
एक लकीर है 
तेरे और दुनियां के बीच 
भीड़ में हो घिरे 
भीड़ से जुदा हो


Monday, 10 October 2016



आओ एक रात कि पढ़ लूं तुम्हे
मुझे लगता हैं कि जिल्त कुछ 
पन्ने कुछ और हैं तेरे
कीरा कीरा रूह बाँट लूं
खलाश ख़लिस कितनी है
हर्फ़ हर्फ़ चख लूं तेरे

कि तस्वीरें तेरी झूठी है
पहनू और पहचान लूं तुम्हें
मैत्रयी पात्र
-------------------------------------
तुम एक ख्याल हो
महीन सा, कोमल सा
एहसास सी हो तुम
तुम्हारी आँखों में
आजादियों के निशां चमकते हैं
तुम्हारे बाएं गाल पर तिल है या ख़ुदा की गाढ़ी हुई कील  
जो तुम्हें आलौकिक बनाती है
तुम्हारी सुरीली आवाज़ है
कि कान्हा की बांसुरी ने तुम्हारे गले में जगह पाई है
तुम पूर्वी पहाड़ से आई हो
और ये तब जान पड़ता है जब
तुम वक़्त सी पास से गुज़र जाती हो
फिर ना मिलने के लिए
और सब बर्फ की सफ़ेद चोटियों से जम जाते हैं
तुम्हारे आकर्षण के जमा देने वाले मोह में वही रह जाते हैं
तुम्हारी पहाड़ियों से तुम्हारे इंतज़ार में
जानती हो  पूरे हिमालय का आकर्षण
तुमने अपनी झलक में पाया है
जब तुम्हारे होँठ पर मुकम्मल अफ़साने सी मुस्कान आती है
तो जाने कितने किरदार उस अफ़साने में जुड़ते जाते हैं
कितनी पागल मोहबतें फूट पड़ती है
उन पहडियों से
जो तुम्हारी आवाज़ फिर से सुनने को वही जमी है
अभी भी
ओ पहाड़ी परी मिलो फिर