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संकरी सी गली से लोगों के दिल तक पहुचने का रास्ता है ये...अपने आप के बारे में कहना सबसे मुश्किल काम होता है... ये आप सब पर छोडती हूँ...

Monday, 10 October 2016

मैत्रयी पात्र
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तुम एक ख्याल हो
महीन सा, कोमल सा
एहसास सी हो तुम
तुम्हारी आँखों में
आजादियों के निशां चमकते हैं
तुम्हारे बाएं गाल पर तिल है या ख़ुदा की गाढ़ी हुई कील  
जो तुम्हें आलौकिक बनाती है
तुम्हारी सुरीली आवाज़ है
कि कान्हा की बांसुरी ने तुम्हारे गले में जगह पाई है
तुम पूर्वी पहाड़ से आई हो
और ये तब जान पड़ता है जब
तुम वक़्त सी पास से गुज़र जाती हो
फिर ना मिलने के लिए
और सब बर्फ की सफ़ेद चोटियों से जम जाते हैं
तुम्हारे आकर्षण के जमा देने वाले मोह में वही रह जाते हैं
तुम्हारी पहाड़ियों से तुम्हारे इंतज़ार में
जानती हो  पूरे हिमालय का आकर्षण
तुमने अपनी झलक में पाया है
जब तुम्हारे होँठ पर मुकम्मल अफ़साने सी मुस्कान आती है
तो जाने कितने किरदार उस अफ़साने में जुड़ते जाते हैं
कितनी पागल मोहबतें फूट पड़ती है
उन पहडियों से
जो तुम्हारी आवाज़ फिर से सुनने को वही जमी है
अभी भी
ओ पहाड़ी परी मिलो फिर