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संकरी सी गली से लोगों के दिल तक पहुचने का रास्ता है ये...अपने आप के बारे में कहना सबसे मुश्किल काम होता है... ये आप सब पर छोडती हूँ...

Monday, 10 October 2016

काशी
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गंगा की छाती पर
सर रखकर सोई
कुछ देर
बूढ़े बनारस के
बढ़े नाखूनो, झुर्रियों से बनी थैलियों
और चिपचिपी चमड़ी वाले हाथों को
छू कर यूँ लगा की तुम वही हो जो मै हूं
और ये मेरी जगह है
मैं हूं मणिकर्णिका
और तुम मेरे काशी
ये जो गंगा है ना
इसी में बहते बहते हम एक किनारे
मिले थे कभी
और हमेशा के लिए एक हो गए
ये गंगा ही साक्षी है
गंगा ही रिश्ता
गंगा ही प्रेम
सूत्र भी गंगा
हम गंगा  के कंकर
गंगा की औलाद
और इसी में मोह
मोक्ष भी इसी में
मैं मणिकर्णिका
तुम मेरे काशी