जोगी
तुम्हारे होने का एहसास नया है
तुम्हारी आँखों की पुतलियों में एक इकाई है
तुम ठराव हो
कौन हो तुम
काँच के दरिया में वफ़ा क़ी कश्ती के माझी से दीखते हो
एक लकीर है
तेरे और दुनियां के बीच
भीड़ में हो घिरे
भीड़ से जुदा हो
तुम्हारे होने का एहसास नया है
तुम्हारी आँखों की पुतलियों में एक इकाई है
तुम ठराव हो
कौन हो तुम
काँच के दरिया में वफ़ा क़ी कश्ती के माझी से दीखते हो
एक लकीर है
तेरे और दुनियां के बीच
भीड़ में हो घिरे
भीड़ से जुदा हो